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बंगाल हाईकोर्ट ने जड़ा शिक्षा व्यवस्था के चेहरे पर तमाचा।

बंगाल की हाईकोर्ट मेंसा बित हो गया है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक कैसे भर्ती होतें हैं?
और शिक्षा विभाग में कितना भ्रष्ठाचार है वह तो हर सरकारी शिक्षक जाणता है। जिला शिक्षा के दफ्तरों मे भ्रष्ठाचारियों के जमावड़े हर काम के पैसे फंडों में गड़बड़ी,खरीददारी में कमीशनखोरी, सरकारी स्कूलों की विज्ञान प्रयोगशालाओं, पुस्तकाल्यों, कम्यूटर कक्षों पर लटके ताले। जंग खाते जनरेटर स्कूलों,ताश खेलते, हुक्का गुड़गुडाते गुरूजन, मिड डे मिल का राशन डकार जाणा, मटरगस्ती करते पहुंवाले अधिकारी।
महीनों दबी रहती फाईलें । भ्रष्ठ और लापरवाह कर्मचारियों के विरूद्ध पक्षपाती निर्णय। सरकारी नीतियों को पलीता लगा कर उलझाने वाली नौकरशाही के मायाजाल में शिक्षा प्रणाली इस कदर उलझी हुई है कि इस इस विभाग के कर्मचारियों, अधिकारियों, और नेताओं को भरोसा ही नहीं है।
उदाहरण सैकड़ों तरंह के टेस्ट दे कर शिक्षक लगणे वाले उन शिक्षकों जिन्होंने शिक्षक होने की पढाई की होती है जिसे बी.एड. कहते हैं। जिसकी पढाई विश्वविद्यालय के कुशल प्रोफेसर करवातें हैं। विश्वविद्यालय की निगरानी में परीक्षा देकर पास करता है।
अर्थात यह डिग्री लेणे वाला एक कुशल शिक्षक है।
लेकिन व्यवस्था को अपनी ही नीति पर हु भरोसा नहीं । क्योंकि इसके बाद और कई तरंह के टेस्ट पास करणे के माया जाल में उसे उलझा दिया जाता है।जिससे निकलने के बाद फिर शिक्षक भर्ती परीक्षा देणी पड़ती है। कभी इंटरव्यू की भी ड्रामेबाजी होती थी। इसके बाद सरकारी शिक्षक का सिलेक्शन होता है। अर्थात हर आग से निकल कर तपकर कुंदन को भारीभरकम वेतन और सुविधाओं पर गुरु जी लगाया जाने की सूचि तैयार होती है।
बस असली खेल इस सूचि को तैयार करणे का होता है जिसके सामने इससे पहले की सभी प्रक्रियाएं बस एक ड्रामा होती है।ए. सी. लगे बंद कमरे में बैठकर चंद नौकरशाह और खद्दर के उजले वस्त्र पहने भ्रष्ठाचारी नेता सिलेक्शन की लिस्ट तैयार करते हैं जिसके जारी होते ही गुरु जी सरकारी स्कूलों में पहुंच जाते हैं।
यहां गौर करणे वाली बात है कि इतनी प्रक्रियाओं से गुजरणे के बाद भारीभरकम वेतन लेने वाले भर्ती हुए गुरु जी पर न तो बी.एड. पढाणे वाले प्रोफेसर जी, परीक्षा. लेणे वाले विश्वविद्यालय, कई प्रक्रिया बणाने वाले बाबू जी और इस सबके बाद सिलेक्शन लिस्ट बणाने वाले नौकरशाह और नेता जी को ही भरोसा नहीं होता है? क्यूंकि उन्हें पता होता है कि उन्होंने योग्य नहीं कबाड़ भर्ती किया है?
इसीलिये इन सब की होनहार औलाद को आपने कभी भी सरकारी स्कूलों में पढते नहीं देखा होगा ?
अब तो हालत यह हो गई है कि सरकारी स्कूलों के कर्मचारी, शिक्षक और विभाग के जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय,राज्य स्तर के कार्यालय के कर्मचारी और अधिकारियों की होनहार औलाद को भी शायद ही आपने सरकार स्कूलों में पढते देखा होगा?
जबकि सरकारी स्कूलों मे कभी विद्यार्थियों के चहुंमुखी विकास के लिये, खेल,संगीत,कला,एन.सी.सी., स्काऊटिंग जैसी गतिविधियां होती हैं। जिनका नियंत्रण बहुत ही. कुशल, अनुभवी, समर्पित शिक्षकों के हाथ में होते थे।
लेकिन जब से भाई भतीजावाद,जातिवाद, भ्रष्ठाचार से भर्तियां, नियुक्तियां होने लगी तो शिक्षा के साथ साथ एक विद्यार्थी के भविष्य को संवारने वाली ये सभी गतिविधियां प्रभावित हो कर नालायकों, चरित्रहीन भ्रष्ठाचारियों के हाथ मे आणे लगी और सरस्मी होकर रह गयी हैं।
अब सरकारी स्कूलों में अपने होनहारों को न पढाणे के न पीछे कारण नौकरशाह,नेता सभी जाणते हैं कि पढाणे वाले शिक्षक किस स्तर के भर्ती किये गये हैं व सरकारी स्कूल और विभाग का असली मकसद क्या है?
यही नहीं अब तो एक और जहालत भरा कदम सरकारी स्कूलों को फेल करणे का उठाया जा चुका है। यानि सभी सरकारी कर्मचारी जो अपने होनहारों को प्राईवेट स्कूलों में पढते हैं उनकी फीस सरकार अदा करती है। ये लह प्राईवेट स्कूल होते हैं जीनमेंकौ न और किस स्तर के कितने वेतन पर पढाने वाले शिक्षक कार्यरत हैं कुछ मालूम नहीं? वहां सभी लोग भारीभरकम फीस अदा करते हैं।
जबकि सरकारी स्कूलों में नाम मात्र को फीस होती है और अनेक प्रकार की सुविधाएं भी विद्यार्थियों को दी जाती हैं।
लेकिन इन सब पर न सरकार को भरोसा है न विभाग को।
सरकारी स्कूलों में चरित्रहीन,अकुशल, दारूबाज, लापरवाह, स्कूलों का सामान बेचणे वाले, मिड डे मिल का राशन डकारणे वाले गुरजनों के बारे में मीडिया में समय समय पर आता रहता है।
अब प्राईवेट स्कूलों को पोषित करणे के लिये नौकरशाहों ने गजब का तौड़़ निकाला है कि प्राईवेट स्कूलों में पढणे वाले सरकारी नौकरों के बच्चों की फीस सरकार अदा करेती है तो सरकारी स्कूल रस्मी व खरीददारी, भर्ती में कमीशनखोरी से.तिजौरियां भरणे के खेल का शिकार हो गये? इसके पीछे भी है बहुत तगड़ा झौल।
एक समय था जब केवल सरकारी स्कूल थे ।शिक्षा और स्वास्थ्य जनहित माना जाता था। बहुत कही कुशल,चरित्रवान, समर्पित गुरूजन पढाते थे। अस्सी के दशक तक शिक्षक का समाज में बहुत सम्मान था। सरकार नौकरियों में भर्ती सरकारी या मान्यता प्राप्त स्कूलों से पढणे वाले युवाओं को मिलती थी। सरकारी स्कूल कि एक मुख्याध्यापक अपने विद्यालय में जरूरत के अनुसार शिक्षक व अन्य कर्मचारियों को भर्ती कर सकता था। तब तक सरकार की कमान भ्रष्ठाचारियों के हाथ में नहीं थी। जैसे ही सरकार की नकेल नालायक, लोभी,भोगी,चरित्रहीन, भ्रष्ठाचारियों के हाथ में आणे लगी। आज परीणाम हमारे सामने है। शिक्षा और स्वास्थ्य ही नहीं आज तो हर सरकारी विभाग पर प्रश्नचिन्ह है।
सरकार स्कूलों और अस्पतालों में असहाय या कागजी कार्यवाही पूरी करवाणे वाले ही जाते है। ऐसी धारणा बन चुकी है।
समय समय पर मीडिया में न्यायालय में भेद खुलते रहते है।
अब तो हर व्यवस्था में हर जगंह भ्रष्ठाचारी बैठा नज़र आता है।
कोलकाता हाई कोर्ट ने सरकारी शिक्षा प्रणाली की जो कलई खोली है वह हमें देश भर में दिखाई देती है।
इस समय देश अंगडाई ले रहा है।
बहुत कुछ बदलाव आने की संभावना है।
इसके लिये
जरूरी है जागरुक नागरिक बणने की।
जगदीश,हाँसी

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